उठ जग और तब तक मत रक जब तक लकषय परपत न ह जए
स्वामी विवेकानंद के अनूठे विचार
परिचय
स्वामी विवेकानंद 19वीं और 20वीं सदी के महानतम आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती हैं। उनका प्रसिद्ध उद्धरण, "उठ जग और तब तक मत रक जब तक लकषय परपत न ह जए", जीवन में दृढ़ता और लचीलेपन के महत्व पर प्रकाश डालता है।
कामज़ोरी को समझना
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हमारी अपनी कमज़ोरियों को समझना सफलता के लिए आवश्यक है। वे कहते हैं, "सवम ववकनद... अनसर खद क कमजर समझन सबस बड पप ह।" दूसरे शब्दों में, अपनी कमज़ोरियों से इनकार करना या उनसे आँखें मूंद लेना सबसे बड़ा पाप है। जब हम अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करते हैं, तो हम उन पर काबू पाने और वृद्धि के अवसरों में बदलने के लिए कदम उठा सकते हैं।
दृढ़ता और लचीलापन
"उठ जग और तब तक मत रक जब तक लकषय परपत न ह जए" का अर्थ है कि हमें अपने लक्ष्यों का पीछा करने में दृढ़ और लचीला होना चाहिए। रास्ते में बाधाएँ आएंगी, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "आपको लड़ना होगा, आपको खून बहाना होगा, आपको खुद को मारना होगा। लेकिन अंत में, आपको जीतना होगा।" इस उद्धरण से हमें यह सीख मिलती है कि सफलता आसान नहीं होती है, लेकिन दृढ़ता और लचीलेपन के साथ हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद का उद्धरण, "उठ जग और तब तक मत रक जब तक लकषय परपत न ह जए", एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि हम अपनी कमज़ोरियों का सामना कर सकते हैं, दृढ़ रह सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। जीवन की चुनौतियों से निपटने और अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए हम सभी को इन शब्दों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
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